पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/५०

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यह शेर यदि निम्नलिखित प्रकार से लिख दिया जावे तब तो उसको सव शुद्धतापूर्वक पढ़ लेगे, अन्यथा बिना वजन पर दृष्टि डाले उसका ठीक-ठीक पढ़ना असभव है——

य कहाँ की दोस्ती है जुबनेह दोस्त नासह ।
को चारकार ' होता को गम गुसार होता ।।

यह हिन्दी-भाषा का २४ मात्रा का दिग्पाल छन्द है, जिसमे बारह बारह मात्राओं पर विराम होता है। किन्तु आप देखे, चौवीस मात्रा का छन्द बना कर लिखने में उक्त शेर के कुछ शब्द कितने विकृत हुए है और किस प्रकार उनमे दुर्बोधता आ गई है। अतएव बोध के लिये शब्दों का शुद्ध रूप में लिखा जाना ही समुचित और आवश्यक ज्ञात होता है। हॉ, पढ़ने के लिये उस वजन का अवलम्बन करना पडेगा जो कि दिग्पाल छन्द का है, चाहे शब्दों और रसना को कितना ही दबाना पड़े, निदान यही प्रणाली प्रचलित भी है। जब उर्दू बह्र में लिखे गये शेर, या हिन्दी-भाषा के पद्य, लिखे चाहे जिस प्रकार से जावे, पढ़े वजन के अनुसार ही जावेगे तो फिर शब्दो को विकृत करने से क्या प्रयोजन ? मै समझता हूँ इस विषय मे वही पद्धति अवलम्बनीय है, जो अब तक प्रचलित और सर्वसम्मत है।

मै यह स्वीकार करता हूँ कि कभी-कभी मात्रिक छन्दो में भी स्वरसयुक्त वर्ण को हलन्तवत् पढ़ने से ही छन्द की गति निर्दोष रहती है, और कही-कहीं इस छन्द में भी वर्णवृत्त के समान नियमित स्थान पर नियत रीति से लघु, गुरु रखने से ही काम चलता है। किन्तु उर्दू बह्र के वजन ही जब इस काम को पूरा कर देते है, तो शब्दो को विकृत कर के बोध में व्याघात उत्पन्न करना युक्तिसगत नही जान पड़ता। वजन के अनुकूल शब्दों को विकृत करके कविता को ठीक कर लेना यद्यपि छन्द की गति के लिये