पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/६२

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वर्ण का प्रयोग दीर्घ की भॉति किया जाता है । सहृदयवर बाबू मैथिलीशरण गुप्त के निम्नलिखित पद्य के उन शब्दो को देखिये जिनके नीचें लकीर खिची हुई है। प्रथम चरण के घ, द्वितीय चरण के श, तृतीय चरण के त्र और चतुर्थ चरण के व तथा ति ह्रस्व वर्गों का उच्चारण इन पद्यो के पढ़ने मे दीर्घ की भॉति होगा।

निदाघ ज्वाला से विचलित हुआ चातक अभी ।
भुलाने जाता था निज विमल वश-व्रत सभी ।।
दिया पत्र द्वारा नव बल मुझे आज तुमने ।
सुसाक्षी है मेरे विदित कुल-देव ग्रह पति ।।

इस प्रकार के प्रयोगो का व्यवहार यद्यपि हिन्दी भाषा में आज कल सफलता से हो रहा है, और लोगो का विचार है कि यदि संस्कृत के वृत्तो की खडी बोली के पद्य के लिये आवश्यकता है, तो इस प्रणाली के ग्रहण की भी आवश्यकता है, अन्यथा बडी कठिनता का सामना करना पडेगा और एक सुविधा हाथ से जाती रहेगी। मै इस विचार से सहमत हूँ, परन्तु इतना निवेदन करना चाहता हूँ कि जहाँ तक संभव हो, ऐसा प्रयोग कम किया जावे, क्योकि इस प्रकार का प्रयोग हिन्दी-पद्य से एक प्रकार की जटिलता ला देता है। आप लोग देखेगे कि ऐसे प्रयोगो से बचने की इस ग्रन्थ मे मैने कितनी चेष्टा की है।

दोपक्षालन चेष्टा

इस ग्रन्थ के लिखने में शब्दों के व्यवहार का जो पथ ग्रहण किया गया है, मैने यहॉ पर थोड़े मे उसका दिग्दर्शन मात्र किया है। इस ग्रन्थ के गुण दोष के विषय मे न तो मुझको कुछ कहने का अधिकार है और न मै इतनी क्षमता ही रखता हूँ कि इस