पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/७

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काव्य-भाषा

यह काव्य खड़ी बोली मे लिखा गया है। खड़ी बोली मे छोटे छोटे कई काव्य-ग्रन्थ अब तक लिपिबद्ध हुए हैं, परन्तु उनमें से अधिकाश सौ दो सौ पद्यों में ही समाप्त है, जो कुछ बड़े है वे अनुवादित है मौलिक नहीं। सहृदय कवि बाबू मैथिलीशरण गुप्त का 'जयद्रथवध' निस्सन्देह मौलिक ग्रन्थ है, परन्तु यह खण्ड-काव्य है। इसके अतिरिक्त ये समस्त ग्रन्थ अन्त्यानुप्रास विभूषित है, इस लिये खड़ी बोलचाल में मुझको एक ऐसे ग्रन्थ की आवश्यकता देख पड़ी, जो महाकाव्य हो, और ऐसी कविता मे लिखा गया हो जिसे भिन्नतुकान्त कहते है। अतएव मै इस न्यूनता की पूर्ति के लिये कुछ साहस के साथ अग्रसर हुआ और अनवरत परिश्रम कर के इस 'प्रियप्रवास' नामक ग्रन्थ की रचना की; जो कि आज आप लोगों के कर-कमलों में सादर समर्पित है। मैंने पहले इस ग्रन्थ का नाम 'ब्रजांगना-विलाप' रखा था, किन्तु कई कारणों से मुझको यह नाम बदलना पड़ा, जो इस ग्रन्थ के समग्र पढ़ जाने पर आप लोगो को स्वयं अवगत होंगे। मुझमें महाकाव्यकार होने की योग्यता नहीं, मेरी प्रतिभा ऐसी सर्वतोमुखी नहीं जो महाकाव्य के लिये उपयुक्त उपस्कर संग्रह करने मे कृतकार्य हो सके, अतएव मैं किस मुख से यह कह सकता हूँ कि 'प्रियप्रवास' के बन जाने से खड़ी बोली में एक महाकाव्य न होने की न्यूनता दूर हो गई। हॉ, विनीत भाव से केवल इतना ही निवेदन करूँगा कि महाकाव्य का आभासस्वरूप यह ग्रंथ सत्रह सर्गों में केवल इस उद्देश्य से लिखा गया है कि इसको देख कर हिन्दी-साहित्य के लब्धप्रतिष्ठ सुकवियो और सुलेखकों का ध्यान इस त्रुटि के निवारण करने की ओर आकर्षित हो। जब तक किसी बहुज्ञ मर्मस्पर्शिनी-सुलेखनी द्वारा लिपिबद्ध हो कर खड़ी बोली मे सर्वांग सुन्दर कोई महाकाव्य आप लोगो को