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प्रियप्रवास

अतसि - पुष्प अलंकृतकारिणी ।
शरद नील - सरोरुह रजिनी ।
नवल-सुन्दर-श्यास-शरीर की ।
सजल-नीरद सी कल-कान्ति थी ॥१६॥

अति - समुत्तम अग समूह था ।
मुकुर - मंजुल औ मनभावना ।
सतत थी जिसमे सुकुमारता ।
सरसता प्रतिविम्बित हो रही ॥१७॥

बिलसता कटि मे पट पीत था ।
रुचिर - वस्त्र - विभूषित गात था ।
लस रही उर मे बनमाल थी ।
कल - दुकूल - अलंकृत स्कध था ।।१८।।

मकर-केतन के कल - केतु से ।
लसित थे वर - कुण्डल कान मे ।
घिर रही जिनकी सब ओर थी ।
विविध - भावमयी अलकावली ।।१९।।

मुकुट मस्तक का शिखि - पक्ष का ।
मधुरिमामय था वहु मञ्जु था ।
असित रन । समान सुरजिता ।
सतत थी जिसकी वर - चन्द्रिका ॥२०॥
 
विशद उज्ज्वल-उन्नत भाल मे ।
विलसती कल केसर - खौर थी ।
असित - पंकज के दल में यथा ।
रज - सुरंजित पीत - सरोज की ॥२१॥