पृष्ठ:प्रियप्रवास.djvu/८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(३)

हस्तगत नहीं होता, तब तक यह अपने सहज रूप में आप लोगों के ज्योति-विकीर्णकारी उज्ज्वल चक्षुओ के सम्मुख है, और एक सहृदय कवि के कण्ठ से कण्ठ मिला कर यह प्रार्थना करता है 'जबलौ फुलै न केतकी, तबलौ बिलम करील।'

कविता-प्रणाली

यद्यपि वर्त्तमान पत्र और पत्रिकाओं में कभी-कभी एक आध भिन्नतुकान्त कविता किसी उत्साही युवक कवि की लेखनी से प्रसूत हो कर आजकल प्रकाशित हो जाती है, तथापि मैं यह कहूँगा कि भिन्नतुकान्त कविता भाषा-साहित्य के लिये एक बिल्कुल नई वस्तु है, और इस प्रकार की कविता में किसी काव्य का लिखा जाना तो 'नूतनं नूतनं पदे पदे' है। इस लिये महाकाव्य लिखने के लिये लालायित हो कर जैसे मैंने बालचापल्य किया है, उसी प्रकार अपनी अल्प विषया-मति साहाय्य से अतुकान्त कविता में महाकाव्य लिखने का यत्न कर के मैं अतीव उपहासास्पद हुआ हूँ। किन्तु, यह एक सिद्धान्त है कि 'अकरणात् मन्दकरणम् श्रेय' और इसी सिद्धान्त पर आरूढ़ हो कर मुझ से उचित वा अनुचित यह साहस हुआ है। किसी कार्य्य में सयत्न होकर सफलता लाभ करना बड़े भाग्य की बात है, किन्तु सफलता न लाभ होने पर सयत्न होना निन्दनीय नहीं कहा जा सकता। भाषा मे महाकाव्य और भिन्नतुकान्त कविता में लिख कर मेरे जैसे विद्या बुद्धि के मनुष्य का सफलता लाभ करना यद्यपि असंभव बात है किन्तु इस कार्य्य के लिये मेरा सयत्न होना गर्हित नही हो सकता, 'क्योंकि करत करत अभ्यास के जड़मति होत-सुजान।' जो हो परन्तु यह 'प्रियप्रवास' ग्रंथ आद्योपान्त अतुकान्त कविता में लिखा गया है—यत मेरे लिये यह पथ सर्वथा नूतन है, अतएव आशा है कि विद्वद्जन इसकी त्रुटियो पर सहानुभूतिपूर्वक दृष्टिपात करेंगे।