ईघर की सौगंद है, थे कुच सुंदर, बड़े, शुभलक्षणयुक्त, लजा-
बान, तथा सुशील हैं और स्वयं ब्रमाही ने इनकी सूरत बनाई
है। किसी से बोलना, हंसना वा किसी की ओर देखना तक
नहीं जानते, केचुकी पहने अति साधु भाव से रहते हैं, और
तू भी अति सरल स्वभावा और पूर्ण गुवती है। ने
ऐसे दो कुचों को देख कर संकोच वश हो में पूछ तो नहीं
सकती, पर मुझे आश्चर्य है कि श्री कृष्ण का मन हरण करने
की प्रकृति इन्हें किसने सिखाई है।
(नोट)-गोल वस्तुओं के वर्णन में यह उदाहरण अच्छा नहीं
हुआ। प्राचार्य भिखारी दास का नीचे लिखा छंद हमें इस
अच्छा ऊँचता है:-
कंज के संपुट है पै खरे हिथ में गड़ि जात ज्यों कुंत की कोर है।
मेरु हैं पै हरि हाथ न आवत चक्रवती पै बड़ेई कठोर है ।
भावती तेरे उरोजन में गुन 'दास' लखे सब और ई और हैं ।
शंभु हैं पै उपजाबैं मनोज सुवृत्त हैं पैं पर चित्त के चार
६, ७-( तीक्षण और गुरु वर्णन)
मूल-नख, कटाक्ष, शर, दुर्वचन. शेलादिक खर जान ।
कुच नितंब,गुण, लाज, मति, रति अति गुरु अरु मान।।१५॥
शब्दार्थ-शेलादिक = शेल, वरली, छुरी, कारी इत्यादि शास्त्र ।
रति = प्रीति । मान = 'मान' भी गुरु माना गया है।
(नोट)-दोहे के पूर्वाद्ध में तीक्षण बस्तुओं के नाम गिनाये
हैं, और उत्तराई में गुरु बस्तुओं के ।
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प्रिया-प्रकाश