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छठाँ प्रभाव


(तीक्षण का उदाहरण) मूल-सैहथी हथ्यार हू ते अति अनियारे, काम, शर हू ते खरे खल बचन विशेपिये। चोट न वचत ओट किये डू कपाट कोट, भान भौंहरे इ भारे भय अवरेखिये । केशोदास मंत्र, गद, यंत्रऊ न प्रतिपक्ष, रक्ष लक्ष लत बन रक्षक न लेखिये । भेदत हैं मर्म, वर्म ऊपर कसेई रहैं, पीर घनी घायलन धाय पै न देखिये ॥ १६ ॥ शब्दार्थ-सैहथी = वरछी। भौंहरा-भौरा, भुईंधरा, तह- स्वाना | मद मरहम पट्टी करना। प्रतिपक्ष - रोकने वाला। रक्ष रक्षक मर्म = मर्मस्थान । वर्मपावन । घनी = बहुत बड़ी भावार्थ = खल के बचन बरछी वा अन्य हथियार से भी अधिक नोकदार हैं तथा कामशर से भी विशेष चोखे हैं। किवाड़ों का कोट बनाकर भी रहें तोभी उनकी चोट से बचाव नहीं, घर तथा तहखाने में रहते हुए भी उनसे भारी भय है । मंत्र, मरहमपट्टी, वा यंत्र (टोटका) से भी उनकी रोक संभव नहीं। लाखों रक्षक और बज भी उससे रक्षा नहीं कर सकते। ऊपर कत्रच कसाही रहता है, पर वे मर्मस्थल तक बेध डालते हैं, उनसे घायल जनों को बड़ी भारी पीड़ा होती है, परंतु धाव दिखाई नहीं पड़ता। (गुरु का उदाहरण) भूल-पहिले तजि आरस आरसी देखि धरीक बस्यौ पनसारहि लै।