पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१०३

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छठा प्रभाव मूल-मैन ऐसो मन मृदु, मृदुल मृणालिका के सृत ऐसी स्वरध्वनि, मननि हरति है। दारयौ कैसे बीज दंत, पात से अरुण ओंठ, केशोदास दखि ग आनँद भरति है। येरी बीर तेरी मोहिं भावति भलाई ताते, बूझति हैं। तोहिं और बूझति डरति है । माखन सी जीभ, मुख कंज सो कवर, तासी काठसी कठेठी बात कैसे निकरति है ॥ १६ ॥ शब्दार्थ- मैन= मोम | दासौ(दाडिम) अनार । पात = पल्लव । और बूझति डरति है == अन्य कोई सखी यूंछते डरती है। कोवर = कोसल । कठेठी = कठोर । भावार्थ-स्पष्ट ही है। ९--(कटोर वर्णन) मूल-~-कुच कठोर भुजमूल. माण वराण बच कहि मित्त । धातु, हाड़, हीरा, हियो, बिरही जन के चिन्ता ॥ २० ॥ शब्दार्थ = भुजसूल-भुजदंड । मणि कोई भी मणि ! बन = इन्द्र का आयुध । हियो और चित्त का अन्वय विरहीजन के साथ समझो। मूल--शूरन के तन, सूम मन, काठ, कमठ की पीड़ि। केशव सूखो चाम अरु, हठ, शठ, दुर्जन डीठि ॥२१॥ मुलकेशोदास दीरघ उसासन को सदागति, आयु को अकास है, प्रकास पाप भोगी को ।