पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९४
प्रिया-प्रकाश


मूल कुलटा, कुटिलकटाक्ष, मन, सपनो, यौवन, मीन । खंजन,अलि, गजश्रवण,श्री, दामिनि, पवन प्रवीन । २६ ( मोट)-ऊपर लिखी वस्तुएं चंचल मानी जाती हैं। एक अन्य कवि का मत है।-- चलदलपत्र, पताकपटदामिनि, कच्छप माथ । भूतदीप, दीपकशिखा, त्यों मनवृत्ति अनाथ ॥ भूल-भार ज्यों भवत लाल, ललना लतानि प्रति, खंजन सो थल, मीन मानो जहां जल है। सपनो सो होत, कहूँ आपनो न अपनाये, भूलिये न बैन ऐन आक की सो फल है । गहिये | कौन गुन, देखत ही रहिये री, कहिये कछू न, रूप माह को महल है। चपला सा चमकनि सोहै चारु चहूँदिसि, कान्ह को सनेह चलदल को सो दल है। २७ । शब्दार्थ-आपनो न अपनाये = अपनाने पर भी अपना नहीं है। भूलिये न बैन = उनकी बातों में आकर भूल न जानाचाहिये । ऐन-ठीक । प्राकको सो फल नीरस । चलइलीधर । भावार्थ-सरल और स्पष्ट है। कृष्ण के प्रेम को भीर, खंजन, मील, सपना, बिजली और पीपरपन्न के समान चंचल कहा गया है। १२-(सुखद वर्णन ) मूल----पंडित पुत्र, पतिव्रता विद्या, बपु नीरोग । सुखदा फल अभिलाष के, संपति, मित्रसँयोग ।।