मूल कुलटा, कुटिलकटाक्ष, मन, सपनो, यौवन, मीन ।
खंजन,अलि, गजश्रवण,श्री, दामिनि, पवन प्रवीन । २६
( मोट)-ऊपर लिखी वस्तुएं चंचल मानी जाती हैं। एक
अन्य कवि का मत है।--
चलदलपत्र, पताकपटदामिनि, कच्छप माथ ।
भूतदीप, दीपकशिखा, त्यों मनवृत्ति अनाथ ॥
भूल-भार ज्यों भवत लाल, ललना लतानि प्रति,
खंजन सो थल, मीन मानो जहां जल है।
सपनो सो होत, कहूँ आपनो न अपनाये,
भूलिये न बैन ऐन आक की सो फल है ।
गहिये | कौन गुन, देखत ही रहिये री,
कहिये कछू न, रूप माह को महल है।
चपला सा चमकनि सोहै चारु चहूँदिसि,
कान्ह को सनेह चलदल को सो दल है। २७ ।
शब्दार्थ-आपनो न अपनाये = अपनाने पर भी अपना नहीं है।
भूलिये न बैन = उनकी बातों में आकर भूल न जानाचाहिये ।
ऐन-ठीक । प्राकको सो फल नीरस । चलइलीधर ।
भावार्थ-सरल और स्पष्ट है। कृष्ण के प्रेम को भीर, खंजन,
मील, सपना, बिजली और पीपरपन्न के समान चंचल कहा
गया है।
१२-(सुखद वर्णन )
मूल----पंडित पुत्र, पतिव्रता विद्या, बपु नीरोग ।
सुखदा फल अभिलाष के, संपति, मित्रसँयोग ।।
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प्रिया-प्रकाश