शब्दार्थ-बनीरोग-रोग रहित शरीर। अभिलाषा के फल =
अभिलाषानुसार फल का मिलना ।
दान, मान, धनयोग, जप, राग, बाग, गृह, रूप ।
मुक्ति, रौम्य, सर्वज्ञता, ये सुखदानि अनूप । २६ ।
शब्दार्थ-धनयोग-धनप्राशि का संयोग। सौम्य = सौम्य
स्वभाव।
(यथा)
मूल-पंडित पूत सपूत सुधी पतनी पतिप्रेम परायण मारी।
जाने सबै गुण, मानै सबै जन, दानविधान दया उर धरी ।
केशब रोगनही सों वियोग, संयोग सुभेोगनि सो सुखकारी ।
साँच कहै जगमाहि लहैयश, मुक्ति,यहै चहुँ वेदविचारी !:३०॥
भावार्थ-पंडित और बुद्धिमान पुन, पतिव्रता स्त्री, सब गुणों
का शान, सब जनो से सम्मानित होना, दानदेना, दया करना,
नीरोग शरीर, सुभेोगों का संयोग, यश और मुक्ति यही
सब वस्तुएं सुखद हैं।
१६-(दुखद वर्णन )
मूल----पाप, पराजय, झूठ, हठ, शठता, मूरख मित्र |
ब्राह्मण नेगी, रूपविन, असहनशील चरित्र ! ३१ ।
शब्दार्थ-पराजय = हार। ब्राहाण नेगी ब्राह्मण कारपरवाज़
{ क्योंकि उसले बर्ण के लिहाज से दवना एड़ता है और
दंड नहीं दे सकते)। रूपबिन - कुरूपता।
मूल-- आधि व्याधि, अपमान, ऋशि, परघर भोजन बास ।
कन्या संलति, बृद्धता, बरषाकाल प्रवास । ३२ ।
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