भावार्थ-श्री सीता जी श्री हनुमान जी से कहती हैं कि मैं
नींद, मुख, प्यास, तथा निंदा का भय सह सकती हूं, लिप
भी खा सकती है, हवा के झोके, दावाग्नि की तथा बड़वाग्नि
की ज्वालाएं सह सफली हूँ। छोर जीर्ण ज्वर की गर्मी (जिल
का वर्णन नहीं हो सकता) सह सकती है, सूर्य की गर्मी
(सू लपट) तथा शभु का प्रताप सह सकती हूं, पर राम-बिरह
सहने में असमर्थ है।
(नोट)-इसमें कठिन तप्त वस्तुओं का वर्णन श्रागया है।
१७-(सुरूप वर्णन)
मूल-नल, नलकून्वर. सुरभिषक. हरिसुत, मदन निहारि ।
दमयंती सीतादि त्रिय सुन्दर रूप विचारि ॥४॥
शब्दार्थ--(पुरुष सौन्दर्य के लिये ) गल = राजा नल ! नल-
कूबर = कुबेर का एक पुत्र । सुरभिषक देवताओं के वैद्य
(अग्विनी कुमार ) हरिसुत= श्री कृष्ण के पुत्र ( प्रद्युम्न ) ।
मदन == कामदेव। (नोट)--श्रीराम जी और नकुल (पांडव)
मी सुन्दर माने जाते हैं।
(स्त्रीसौन्दर्य के लिये)-दमयंती, सीता। 'आदि' शब्द में
इन्दुमती, रति, सावित्री, अप्सराय, देवपत्नियां, लक्ष्मी,
इन्द्राणी तथा द्वारा रोहिणी, द्रौपदी इत्यादि को भी समझना
चाहिये।
(यथा)
मूल-को है दमयंती इन्दुमती राति राति दिन,
होहिं न छवीली छमछबि जो सिंगारिये ।
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प्रिया-प्रकाश