पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/११५

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१०४ प्रिया-प्रकाश हेसमाल बोलत ही मान की उतारि माल, बोलै नदलाल सो न ऐसी बाल को हिये ॥४६॥ शब्दार्थ-केकी मोर । केकामर की बोली । मनमथ-मनो- रथ रथ-पथ = कामेच्छा के रथ का रास्ता (यह शब्द 'केका' का विशेषण है)काकली = कोकिला की बोली । कलित = शुरू। ललित = सुंदर! न अवरोहिये-रोका नहीं रहता। कोकन की कारिका = कोकशास्त्र के सूत्र-( प्रेमपूर्णवार्ता)। शारि- कान =शारिकाओं से । नारि का युवतियों की तो बात स्था। कुमारिका-कुमारियां। इसमाल- हंस समूह । मान की माल उतारि=मान छोड़कर। ऐसी बाल को हिये ऐसे कठोर हृदय की स्त्री कौन है। (विशेष)-मेरी सम्मति में इस छेद में 'गणिका' नायिका है। शरदऋतु में नायक ने उसे 'हंस' (नूपुर ) और 'माल' (मोती माला) देकर उसका मानमोचन कराया है। मान- मोचन का कारण पूछे जाने पर वह कहती है कि :-- भावार्थ-वर्षाकाल में मोर की बोली सुनकर-जो बोली काम यासलाओं के रथ के लिये पंथ रूप है (जिस बोलीको सुन- कर स्वयं काम बासना चलायमान होती है.--किस का मन काम से व्यथित नहीं होता (मानिनी नायिकाए इस समय मान त्याग कर नायको से मिटती हैं, पर मैने उस समय भी मान नहीं छोड़ा)। बसंत ऋतु में जब कोकिल की बोली से सुंदर बाग गूंज जाते हैं, बस उन बागों को देखतेही हृदय का अनुराग रोके नही रुकता । उसी ऋतु में जब शुक्र- गण शारिकाओं से प्रेम मश वार्ता करते हैं, तब युवती स्त्रियों की तो बात क्या कुमारी कन्यायें भी नवयुवकों पर मोहित