पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/११६

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शरद में छठा प्रभाव होती है ( पर मैंने तब भी मान नहीं छोड़ा)। पर इस शरद ऋतु में-हंस समूह के बोलते ही (नूपुर और माला देने कहते पर) मान की माला उतार कर (मान छोड़ कर) कान ऐसे कठोर हायवाली स्त्री होगी जो नंदलाल से न बोलेगी-नूपुर और माला लेकर तब नंदलाल से बोली है) (नोट)-नायिका के कथन का भाव यह है कि प्राकृतिक उद्दीपनों से उत्तेजित होकर मैंने मान नही छोड़ा, वरन जब नायक ने नूपुर और माला देने का वादा करदिया है-(हेस माल बोलत ही)-तब मान छोड़ा है, 'हसमाल' का बोलचा उत्रित है, बर्षा या संत में नहीं। इसी विचार से हमने ऐसा अर्थ किया है। २०--(मधुर वर्णन) मूल-मधुर मियाधर, सोमकर माखन, दाख समान । बालक बाते तोतरी, कबिकुल उक्ति प्रमान ॥४७॥ शब्दार्थ-सोमकर-चंद्रकिरण । महुवा, मिसरी, दूध, धृत अति सिंगार रस मिष्ट । ऊख, महूष, पियूष गनि केशव सांचो इष्ट ॥४८॥ शब्दार्थ-महूष = (मधुच्छिष्ट ) शहद । इष्ट = मित्र । मूल खारिक खात न दारिम दाखहु माखन हू सह मेटी इठाई। केशव ऊख महूबहु दूषत आई हों तो पहँ छाँडिजिठाई । तो रदनच्छद को रस रचक चाथि गये कार केहूँ ढिठाई । ता दिन से उन राखी उठाय समेत सुधा वसुधा की मिठाई ४६ शम्दार्थ-हारिक छोहारा । दारिम= अनार । सह = से ।