पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/११७

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प्रिया-प्रकाश मेटी इठाई = मित्रता छोड़ दी। मरूष = शहद । दूषत = दोष सनाते हैं। जिठाईजेडापन । रदनच्छद -अधर, ओठ । रंचक थोडासा। भावार्थ -सरल है। २-(अबल वर्णन) मूल-पंगु, गुग, रोगी, बनिक, भीत, भूखयुत जानि । अंध, अनाथ, अजादि शिशु,अबला,अबल बखानि ॥५०॥ शब्दार्थ-गुंग = गूंगा। (क्योंकि किसी को पुकार नहीं सकता, इससे अबल कहा) वनिक = बनिया । (क्योंकि शस्त्र धारण इनका धर्म नहीं)। अजादि-बकरी। हरिन और पशुवत्स इत्यादि। मूल-खात न अघात सब जगत खवावत है, द्रौपदी के सागपात खातही अधाने हो। केशोदास नृपति सुता के सतभाय भये, चोर ते चतुरभुज चहूँचक जाने हो। मांगनेऊ, द्वारपाल, दास, दूत, सूत, सुनौ, काठमाहि कौन पाठ वेदन बखाने हो । और हैं अनाथन के नाथ कोऊ रघुनाथ, तुमतो अनाथन के हाथ ही विकाने हौ ॥५१॥ शब्दार्थ-सतभाय = सद्भाव से! चहूंचक =चारो ओर। मांगने = बलि के लिये बामन होकर भिक्षुक बने । द्वारपाल - उनलेन के यहाँ। दास= सेन भक्त के रूप से। दूत = पांडवों के लिये । सूत = अर्जुन के । काठमाहिंहौसंदीपन गुरु के