पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/११८

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छठा प्रभाव लिये लकड़ी तोड़ने के लिये गये थे, लकड़ियां तोड़ने में कौनसा वेद पाठ का गुण है। चोर ते चतुरभुज-एक राज कन्या कृष्ण को बरने का प्रन ठाम वैठी। एक राजकुमार कृष्ण का रूप बनाकर रात को उसके पास आना जाना प्रारंभ किया। कुछ दिन में एक सखी ने कहा कि तू ठगी गई तेरा पति कृष्णा नहीं, यदि वे चतुर्भुज रूप दिखा तो हम मान । वह राजकुमारी बड़े दुःख में पड़ी । प्राण देना निश्चय किया। एक रात को उस चोर राज कुमार के बदले कृष्ण ने अपना चतुर्भुज रूए सबको दिखाया था। यह कथा भक्तमाल में है। सागपात 'अधाने हो द्रौपदी और दुर्वासा की कथा भारत में प्रसिद्ध है। भावार्थ- २२--(बलिट बर्णन) मूल--पवन, पवन को पूत अरु परमेश्वर, सुरपाल । काम, भीम, बाली, हली, बलि राजा, पृथु, काल ॥५२॥ सुरपाल =इन्द्र । हली - बलदेव जी। मूल-सिंह, बराह, गयंद, गुरु, शेष सती सबनारि । गरूड, बेद, म ता, पिता, बली अदृष्ट विचारि ॥५३॥ सती सबमारिलव सती नियां । अकृष्ट प्रारब्ध कर्म । मूल-बालि बिध्यो,बलिराव बँध्यो, कर शूली के शूल कपालथली है । काम जरयो जग, काल परचा बँदि,शेष धरयो विष हाला हली है ! सिंधु मथ्यो,किल काली नथ्यो,कहि कंशव इन्द्र कुचाल चली है । राम हू की हरी रावण बाम, चहूँ युग एक अदृष्ट बली है ॥५४॥