पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/११९

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प्रिया-प्रकाश भावार्थमा बली था, पर वह राम के शर से विद्ध हुश्रा, राजा बलि मली था, पर वह बांधा गया, महादेव बली हैं (क्योंकि स्मृधि संहारक हैं) पर केवल भिनाल और मुंडमाला ही उनके पास है ( अधिक संपति नहीं ) काम बला था, पर बह जल गया, कार बली है, पर वह भी राम की कद में पदा, शेष बली हैं, पर उन्हें भी मिष खाना पड़ा, बलदेव जी बली थे, पर वे भी शराब के वश थे। सिंधु मया नया, काली नाग नाथा गया, इन्द्र ने वल्ली होकर (हल्या से) कुआल चली, राम की लीरावण हरण की, अतः निश्चय हुआ कि (बली होने से कुछ भी नहीं होता ) चादरे शुगों में एक प्रारब्ध कर्म ही बलवान है। २३, २४-(सत्य मूठ वर्ण) मूल-केशव चारिह बेद को मन क्रम बचन विचार । सांचो एक अनुष्ट हरि, भूठो सव संसार १५५॥ भावार्थ-चारो घेदों को पढ़कर पिचारा तो कर्म और हरि ( भगवान ) साय जैचे, और सब झूठा अंचा। (यथा) मूल-हाथी न साशी न घारेन चेरे न गांव न सब को नांव बिलैहै। तात न मात न मित्र न पुत्र न चित्त न अंग हू संग न रै है। केशव काम को 'राम' विसारत और निकाम न कामहि एहै। सरे चत अौं चित अन्तर अंतक लोक अकेलहि जैहै ॥५६॥ शब्दाईकाम को राम केवल 'राम' का नाम काम की बस्तु है ( सत्य है) उसे तू भुलाता है, यह बात अच्छी नहीं।