पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१२०

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छठा प्रभाव निकाम-देकार याने असत्य और अनित्य । भिल अंतर- दिल में । अन्तक = यमराज। भावार्थ-बहुत स्प है। मूल--अनही ठीक को ठग, जानै ना कुठौर ठौर, ताही पै ठगावै ठेलि जाही को ठगतु है । याके डर तू निडर ! डग न डगत डरि. डर के डरन डगि डोंगी ज्यों डगतु है। ऐसे बसोवास ते उदास होय केशोदास, केशो न भजत कहि काहे को खगतु है । झूठो है रे झूठो जग राम की दोहाई, काहू सांचे को किया है ताते साँचो सो लगतु है ।।५७।। शब्दार्थ-प्रमही ठीक को 7-टू विना ठिकाने का जग है (टगी का काम किसी अच्छे गुरु से नहीं सीखा)। ठेलि = बरबस, जबरई थाकेडर- इस बेईमानी (पाप) के डर से। निडर हे निडर ( संबोधन में)। डरिडर कर एक माग भी नहीं उगता। याके डर"डरि=हे निडर ! तू इस पाप के डर से डर कर सनक मी विचलित नहीं होता, इस पाप से जरा भी नहीं डरता । डर के डमन- अन्य सांसारिक कष्टों के डर से डर कर। डॉगी छोटी बाब । गतु कांपता है । बसोबास = स्थान अर्थात संसार । होय होकर। केशो नमजत नारायण का भजन नहीं करता। खगतु है - अनुरक होता है, जिस होता है। (नोट)कोई गुरु निज शिभ्य को उपदेश देता है। भावार्थ-तू बेठिकाने का ठग है ( तुझसे ठगते नहीं बनता)