पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१२४

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छठा प्रभाव वाह न करके, जमीन से आस्मान तक फिरा करते हैं (ौतम से मिलने की अनेक सवीरें सोचा करतो)। मैं अपने शरीर को वापी कूपादि की तरह कब तक जड़त् स्थिर रख अतः अब तो मैने यह निश्चय किया है कि वैसे नदी पहाड़ को फोड़ कर, बाधक वृक्षों को सोड़कर प्रापही शिशु से जा मिलती है, वैसेही मैं भी ज्ञान के बंधन तुड़ाकर और लाज के वृक्षों को गिराकर आपही अपने प्रीतम से जा मिलू। २८-(दानी वर्णन) मूल गौरि, गिरीश, गणेश, विधि, गिरा, महन को ईश ! चिंतामाण, सुरवृक्ष, गो, जगमाता, जगदीश ॥ ६२, ५, शब्दार्थ --प्रहन को ईश =सूर्य । गो- सुरगो, कामधेनु । जग- माता लक्ष्मी । जगदीश = लारायण भगवान। (नोट)-ये दिव्य दानी हैं। मूल-रामचंद हरिचद, नल, परशुराम दुख हर्ण । केशवदास दधीच, पृथु, बलि, शिवि, भीषम कर्य ना६३ (नोट) येदि यादिव्य दानो हैं। मुल-भोज, विक्रमादित्य, नृप, जगदेव रणधीर । दानिन हू के दानि दिन, इन्द्रजीत बलबीर ॥ ६४ ॥ शब्दार्थ-जगहव = इन्द्रजीत के बड़े भाई थे। दिन-प्रतिदिन । बलबीर-अकबर के श्रमात्य धीरजर। (TTT) (गौरी को दान वर्णन) मूल-पावक फसि, विष, भस्म, मुख हर पवर्गमय मान । देत जु हैं अपवर्ग को, पारबती पति जान ॥६५॥ .