पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रिया-प्रकाश शब्दार्थ-पाणि - सर्प । मुख = मुंडमाल । पवर्गमय = ऐसी वस्तुओं से युक्त हैं जिनके नाम प, फ, ब, भ, और म से प्रारंभ होते हैं। अपवर्ग मोक्ष । ऊंची गति । भावार्थ-महादेव जी तो पवर्गमय हैं अर्थात् उनके पास पावक, फणि, विष, भस्म और मुम्माल के सिवाय और है ही क्या जो देंगे, पर जो सबको मुक्ति देते हैं वह केवल पार्वतीपति होने के कारण जानो अर्थात् पार्वती ही सबको मुक्ति देती है, पर उसे भी संकोचवश स्वयं न देकर अपने पति के हाथों दिलवा देती हैं । वे सकुचती हैं कि ऐसी छोटी चीज हम क्या दें (बड़े लोग तुच्छ वस्तु देने में सकुचते है और दूसरे के हाथों दिलवा देते हैं )। (नोट)-मुक्ति सरीखे पदार्थ को जो तुच्छ समझ कर निज हाथों देने में सकुचता हो वह कैसा संपत्तिवान दानी होगा इसका अनुमान पाठक स्वयं करलें। (गणेश जू को दान वर्णन ) मूल बालक मृनालनि ज्यों तोरि डारै सबकाल, कठिन कराल त्यों अकाल दीह दुख को । विपति हरत हठि पद्मिनी के पात सम, पंक ज्यों पताल पेलि पठवै कलुष को । दूरि के कलंक अंक भव सीस ससि सम, राखत हैं केशोदास दास के बपुष । "सोकरे की सांकरन मनमुख होत तोरे, दशमुख मुख जावै गजमुख मुख को ॥६६॥ (नाट )-इसकी टीका केशवकौमुदी में लिख चुके हैं।