पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१२७

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प्रिया-प्रकाश सब भूल गई ! और उसी समय काल भी भय से काला पड़ गया (कि कहीं मुझे ही उसका दास न बना दें। (ब्रह्मा को दान वर्णन) भूल-आशीविष, राकसन, दैयतन दै पताल, सरम, नरन दियो दिवि, भू, निकेतु है। थिर पर जीवन को दीन्ही बृत्ति केशोदास, दीबे कहूँ कहौ कहा और कोऊ हेतु है। सीत, बात, तोय, तेज आवत समय पाय, काहू पै न नाको जाय ऐसो बांधो सेतु है। अब तब जब कष, जहां तहां देखियत, विधि ही को दीन्हो सब सब ही को देतु है ॥६८॥ शब्दार्थ-आशीविष सर्प। दिवि स्वर्ग। भूपृथ्वी । ऋत्ति जीविका, रोजी। दीवे हेतु बतलायो तो, क्या देने का कोई और भी कारण है अर्थात केवल जीविका के हेत ही तो सारा दान होता है सो ब्रह्मा ने जीविका सबको दी ही है। सीत-सरदी। बार-हवा। तोय - पानी। तेज-प्रकाश । सेतु = मर्यादा। अब तब जद क्रय-वर्तमान, भूत, भविष्य । जहां तहाँ देखियत-अहाँ देखते हैं तहीं। भावार्थ-सपा, राक्षसों और दैत्यों को पाताल लोक दिया, देवों को स्वर्ग और भरों को भूलोक बसले को दिया । चरा- चर जीवों को जीविका दी, बतलाओ तो और क्या दिया जाता है (हने का स्थान और जीविका यही तो सर्वल है ) सरदी, गरमी हवा, पानी समय समय पर मिलते ही है,