पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१२८

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छठा प्रभाव इनके मिलने की ऐसी मर्यादा बांधदी है कि कोई उल्लंघन नहीं कर सकता । भूत, भविष्य, वर्तमान में जहां कहीं दान देखा जाता है वह सव ब्रह्मा ही का दिया तो है (ब्रह्मा ही की दी हुई बस्तु सब को सबकोई देते हैं) (गिरा को दान वर्णत) भूल-बानी जगरानी की उदारता बसानी जाय. ऐसी मति उदित उदार कौन की भई । देवता प्रसिद्ध सिद्ध ऋषिराज तप वृद्ध, कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई । भावी, भूत, वर्तमान जगत बखानत है, केशोदास क्योंहू न बखानी काडू पै गई। वणे पति चारि मुख, पूत वणे पांचमुख, नाती बर्गे पटमुख तदपि नई नई ॥ ६९ । शब्दार्थ-धानी सरस्वती । उदारवडी । हारे थकगये। क्योहू = किसी तरह । पति = ब्रह्मा । पूत महादेव । नाती = षटमुख । तदपि तौभी। भावार्थ-स्पष्ट है । ( टीका केशव कौमुदी में देखिये। (सूर्य को दान वर्णन) मूल-बाधक निविधि ब्याधि त्रिविध, अधिक आधि, बेद उपवेद बध बंधन विधान हैं। जग पारावार पार करत अपार नर, पूजक परम पद पावत प्रमानु हैं।