पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१२९

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प्रिया-प्रकाश पुरुष पुरान कहैं पुरुष पुराने सब, पूरण पुराण सुने निगम निदान हैं। भोगवान भागवान भगतन भगवान, करिवे को केशोदास भानु भगवान हैं ॥७० । शब्दार्थ-त्रिबिधि व्याधि = दैहिक, दैविक, भौतिक कष्ट । वेद "विधानु हैं वेदों और उपवेदों को बध कर डालने वा स्थगित कर कर देने का विधान हैं ( यदि सूर्य देव चाहें तो वैदिक क्रियाएं होने दें, न चाहे न होने दें)। पारा- वार समुद्र । पूरण निदानु हैं = ऐसा सुना है कि संपूर्ण पुराणों के पथ पर लोगों को चलाने के लिये सूर्य ही प्रधान कारण है ( सूर्य उदय हो तो पौराणिक क्रियाएं हो, न उदय हो तो स्थगित रहें)। भगवान=(१) शक्तिमान । (२) षडैश्वर्य भावार्थ-सूर्य देव असंख्य त्रिविधि व्याधियों के नाशक हैं। आधि ( मानसिक दुःख ) को तो अधिकतर रोकते हैं, बेदी और उपवेदों के लिये तो बध और बंधन तक के विधायक हैं (वैदिक कृत्य सर्वथा सूर्य की चाल पर निर्भर हैं ) । सूर्य देव पूजक असंख्य जन भवसागर पार करते हैं और निश्चय परमपद पाते हैं। सब पुराने लोग सूर्य को सर्वजेष्ठ पुरुष कहते हैं, और मानते हैं कि सम्पूर्ण पुराणों के भाग को चलाने के मूल कारण हैं ( पुराणानुमोदित कृत्य भी सूर्य की चाल पर निर्भर है) अपने भक्तों को भोगवान, भाग्यमान और शक्तिशाली बनाने में सूर्य देव पूर्ण क्षमता रखते हैं। (परशुराम जू को दान वर्णन ) मूल-जो धरनी हिरनाल हरी बर यग्यबराह छिनाय लई जू । संपन्न।