पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१३७

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प्रिया-प्रकाश बिध्य कैसो बंधु बर बारन बलित, वाघ, वानर बराह बहु, भिल्लन अभीत है। यम की जमाति किधौं जमावंत कैसो दल, महिष सुखद स्वच्छ रिच्छन को मीत है। अचल अनलवंत, सिंधु सुर्सरितयुत, शंन कैसो जटाजूट परम पुनीत है ॥ ७ ॥ शब्दार्थ f-धारन-- हाथी । भिल्लन अभीत है - सिल्लों को अभय प्रद है। स्वच्छ - स्वछंदचारी । अचल = पहाड़ । अनलवंत = (१) श्रागवाले, ज्वालामुखी। (२) मिलायां के वृक्षों से सुत । (नोट) तुंगारण्य में कोई ज्वालामुखी पर्वत नहीं, पर कराव ने अपने पांडित्य से वहां के पर्वतों को 'अनलवंत कर कर बड़ा काम किया है। सिंधु = उस देश में सिंधु नाम की एक नदी है जो बुदेलखंड और ग्वालियर राज्य की सरहद्दी नदी है। सुर्सरित =(स्वर्सरित) गंगा। भावार्थ-तुंगारण्य नामक बन, जो ओरछे के इर्द गिर्द तीस तीस कोस तक चारो ओर फैला हुआ है, शत्रुओं के लिये श्रजीत है। वह बन विध्यारण्य का भाई सा है ( उसी के समान है ) वहां हाथी, बाघ, बानर, बाराह बहुतायत से हैं और वह बन भिल्लों को अभयप्रद है-(लुटेरे भील वहां छिपे रहते हैं, उन्हें कोई पकड़ नहीं सकता )यमराज की सेना के समान अन्ना मैसों के लिये वह बन सुखद है अथवा जामवंत के से गण स्वछंदचारी रीछों का मित्र है। वहां के पर्वत अगलवत है ( भिलावां वृक्षों से युक्त हैं ) और सिंधु नामक नदी, (गा सम पवित्र ) वहां बहती है जिससे जान पड़ता