पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१३८

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सातवाँ प्रभाव है कि यह बन शंभु के जटाजूट सम पवित्र है-(शिवमस्तक पर भी अनल और गंगा हैं, यहां भी अनल और सिंधु हैं)। ( बाग वर्णन) मूल-ललित लता, तरुवर, कुसुम, कोकिल कलरव, मोर वरदि बाग अनुराग स्यों, भवर भवत चहुँ ओर ॥ ८ ॥ शब्दार्थ F-कलरव = कबूतर । अनुराग स्यों-जिसको देखकर अनुराग पैदा होता है ( कवि को ऐसाही कहना चाहिये। 1 यथा- देखि बाग अनुराग उपजिय । ( रामचंद्रिका) बागतडाग विलोकि प्रभु हरफे बंधु समेत-(तुलसी) मूल--सहित सुदरशन करुणाकलित कम- लासन बिलास मधुबन मीत मानिये । सोहिये अपर्णा रूपमंजरी श्री नीलकंठ केशोदास प्रगट अशोक उर आनिये । रंभा स्यौं सदंभ बोलै मंजुघोषा उरवसी, हंस फूले सुमनस्लु सब सुखदानिये । देव को दिवान से प्रवीणराय जू को बाग, इन्द्र के समान लहां इन्द्रजीत जानिये ।। (नोट)-नियमोपना द्वारा इस कवित्त में केशवजी प्रवीणराय के बाता को देव समासम कहते हैं ( देखा प्रभाय १४ छंद नं.२१, २२) शब्दार्थ--(देवसभा संबंधी सहित सुदर्शन करुणाकलितः सुदर्शन चक्र सहित करुणाकर बिष्णु ! कमलासन -ब्रह्मा । wa ९