पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१३९

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निया-प्रकाश मधुघनमीतः =कृष्ण । अपर्णा=पार्वती। रूपमंजरी-पार्वती की सखी। नीलकंठ-शिव। केशवदास = नारद, भृगु, सनकादि । अशोक - आनंदित । रंभा, मंजुघोषा, उर्वशी अप्सराएं विशेष । हंस-सूर्य । फूले सुमनस= आनंदित मन देवता। ( बाग संबंधी)- सुदर्शन = पुष्प विशेष । करुणा वृक्ष- विशेष । कमलासन कमल और असना (विजयसार का वृक्ष ) मधुवनमीत = बधुबन का मित्र सा है। अपर्णा =करील वृक्ष । रूपमंजरी सदा सोहागिन नामक पुष्प वृक्ष विशेष । नीलकंठ मोर, चाप और कबूतर बिशेष । अशोक = वृक्ष विशेष्ठ । रंभा केला । मंजुघोषा- कोयल । उरवसी जिसकी काकली उर में बस जाती है । हंस-मराल । सुमन -फूल । भावार्थ-देव सभा में सुदर्शन चक्रलिये बिघणु रहते हैं, तो यह वाग भी सुदर्शन और करुणा से युक्त है। वहां कमलासन (ब्रह्मा) का बिलास है तो यहां भी कमलों और अशना (विजयसार ) का सौन्दर्य है । वहां मधुबनमीत (कृष्ण) रहते हैं, तो यह बाग भी स्वयं मधुबन का मित्र है (समान है) वहां देवसभा में रूपमंजरी और पार्वती सहित शिव रहते हैं तो यह बाग भी करील, सदासोहागिल और मोर या चाप युक्त है। वहाँ श्रानंदित हृदय हरिभक्त जन हैं तो यहां भी अशोक वृक्ष हैं। वहां रंभा, मंजुधोका और उर्वशी आदि अप्सराएं सगर्व बातें करती हैं, तो यहां भी केला वक्ष हैं और कोयल बोलती है जिसकी काकली श्रोता के हृदय में बस जाती है। वहां सूर्य हैं तो यहां भी इस पक्षी हैं (भाग के सरोवर में)। वहाँ आनंदित देवता हैं तो यहां भी पुष्प फूले हुए हैं जो सब को सुख देते हैं । अतः यह प्रयोगाय का बाग