पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१४

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श्रीहरि पहला प्रभाव ( राजवंश वर्णन) (श्रीगणेश वन्दना) मूल-गजमुख सनमुख होत ही विधन बिमुख है जात ।। ज्यो पग परत प्रयाग मग पाप पहार बिलात ॥१॥ शब्दार्थ-माजमुख - श्रीगणेशजी। सनमुख-अनुकूल, कपालु। विमुख है जात = विना मुख के हो जाते हैं ( नष्ट हो जाते है) भावार्थ- मैं श्रीगणेश जी को नमस्कार करता हूं, क्योंकि) श्रीगणेश जी के अनुकूल होते ही समस्त विघ्न नष्ट हो जाते हैं, जैसे प्रयागप्रस्थान में प्रथम पग पड़ते ही पापों के पहाड़ विलीन हो जाते है। (विशेष) हाथी अपने दातों से पहाड़ों की टोरें खोद कर गिरा देते हैं, अतः 'गजमुख' शब्द के साथ 'पाप पहाड़ का रूपक बड़ा मज़ा दे रहा है। मूल-बानी जू के बरन जुग सुबरनकन परमान । सुकवि ! सुमुख कुरुखेत परि होत सुमेर समान ॥२॥ शब्दार्थ--बानी = ( बाणी ) भाषा, जबान । बरन जुग-दो प्रकार के अक्षर अर्थात् लघु गुरु ( हस्व दीर्घ )