पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१४०

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सातवाँ प्रभाव देवलमा सम है, और जैले वहां सभा में इन्द्रदेव रहते हैं वैसेही यहाँ राजा इन्द्रजीत को समझिये। (गिरि वर्णन) मूल-तुंग शृंग, दौरध दरी, सिद्ध सुंदरी, धातु । सुर, नर युत गिरि वर्णिथे, औषध, निझरपातु ॥१०॥ शब्दार्थ-तुंग गऊंची चोटी । दीरध दरी-गहरी गुफा। सिद्धमुंदरी-सिद्धों की स्त्रियां । धातु = लोहा, लोना, गेरू, मनशिल इत्यादि । श्रोषध जड़ी बूची। निर्भरपात झरनों का ऊपर से गिरना। (यथा) भूल-रामचन्द्र कीन्हे तेरे अरिकुल अकुलाय, मेरु के समान श्रान अचल धरीनि में । सारो शुक हंस पिक कोकिला कपोत मृग, केशोदास कहूं हय करम करानि में । ढारे कई हार टूटे राते पोरे पट छूटे, फूटे हैं सुगंध घट श्रवत तरीनि में। देखियत शिखर शिखर प्रति देवता से, सुंदर कुँबर अरू सुंदरी दरीनि में ॥ ११ ॥ --भान अचल = अन्य पहाड़ों को। घरोनि में केवल कई एक धलियों में (अति अल्प समय में ) करम - हाथी का बच्चा। करीनिहाथियों भय (अश्व, करम और हाथी इत्यादि पशुश्री स युक्त या पूर्ण ) डार पड़े हुए हैं। राते- लाल । श्रवत = बहते हैं। वरीनि मेयहाड़ की तरहटी में। दीनि में - गुवाओं में।