पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१४३

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प्रिया-प्रकाश (२)अर्जुन पाल वामक महोनी नरेश के हाथों जिसका प्रवाह बढ़ाया गया है ( वेतवा नदी का)। राजन की रज मोहै = राजाओं की राजसी जिसके सामने मूच्छित हो जाती है ( कोई राजा जिस पर पुल नहीं बँधवा सकता)। जग- लोचन = (१) सूर्य (२) जगत के लोचन । विपोहै =छेद डालती है। सूरसुता=यमुना। भावार्थ-ओरछे के निकट वाली बेतवा नदी ऐसी है कि उसे कोई शत्रु पार नहीं कर सकता। वह नर्मदा (रेवा) नदी के समान है, क्योंकि उसका प्रबाह सहस्रार्जुन द्वारा बढ़ाया गया था और इस बेतवा का बाह अर्जुन पाल नामक बुंदेला नरेश द्वारा बढ़ाया गया है (दोनों नदियां 'अर्जुन' नामक राजाओं द्वारा सम्मानित हैं ) जिसके सामने राजाओं की राजसी शान भूल जाती है। बेतवा नदी अपनी ज्योति के कारण (श्याम जल होने से) यमुना सी लगती है। यमुना सूर्य द्वारा लालित है, यह बेतवा जग के लोचनों से लालित है (जग जन प्रेमभाव से देखते हैं) और पापो को छेद डालती है (नाश कर देती है) और चूंकि यह बेतवा यमुना से मिली है ( जैसे गंगा मिली है) और ऊंची तरंगों वाली है (जैसे गंगा है ) इस कारण यह भी गंगा के समान शोभित है ( गंगा के समान है) . ( ताल वर्णन) मूल-ललित लहर, बग, पुप्प, पशु, सुरभि समीर, तमाल । करभ केलि पंथी प्रगट, जलचर बरनहु ताल ॥ १६ ॥ शब्दार्थ-तमाल = यहां उप लक्षण मात्र समझना चाहिये