पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१४४

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सातवाँ प्रभाव तात्पर्य अनेक प्रकार के वृक्षों से है। करम हाथी के बच्चे। पंथी- मुसाफिर। (यथा) मूल--आपु धरै मल औरनि केशव निर्मल काय करें चहुँ ओरें । पंथिन के परिताप हरै हठि जे तर तूल तनोरुह तोरें । देखहु एक सुभाव बड़ो बड़भाग तड़ागन को बित थोरै ! ज्यावत जीवन हारिन को निजबंधन कै जगबधन छौ !! शब्दार्थ-चहुंओर = चारो ओर के घाटों पर । परिताप = दुःख कष्ट । तूल == ( तुल्य ) सम । तनोरुह =पुत्र । जेतरु...तारें जो पुत्रवत लालित पालित वृक्षों के अंगों को तोड़ते हैं (बहुधा पंथी लोग कमलादिक पुष्प वा तट के वृक्षों की शाखाएं तोड़ लेते हैं जो उस ताल के लिये पुत्रवत् हैं ) बित थोरें-थोड़ेही धन से । जीवनहारी जल हरण करने वाले। निजवंधन के अपने घाट बंधवा कर । जग बंधन छोरे जग के लोगों को बंधन मुक्त करते हैं-(पुराणों में लिखा है कि जो ताल के घाट बँधवाता है उसको मुक्ति प्राप्त होती है) भावार्थ---आप तो औरों के मल धोकर अपने शरीर में धारण करते हैं, पर चारो ओर के अन्य जनों को निर्मल काय कर देते हैं। जो मुसाफिर पुत्रवत् पुष्प वा वृक्षों की शाखाएं तोड़ते हैं उनके कष्टों को भी हर लेते हैं। बड़भागी तड़ागों के एक बड़े अच्छे स्वभाव को तो देखो कि जीवन (जल) हरण करने वाले को भी जिलाते हैं और जिन बंधन कराकर जग जन को बंधन से छोड़ाते हैं !