पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१४६

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सातवाँ प्रभाव राक्षसी (२) तरैयां । तारक =(१) तारनेवाला (२) लाइन करने वाला (विनष्ट करनेवाला) प्रभातकर सूर्य । प्रभुताई = ईश्वरता, बड़ाई । तारका को तारक = श्री रामजी। ( शब्द सास्य से अच्छा काम लिया गया है.) (नोट)-इस छंद में केशष संदेहालंकार द्वारा प्रभात का प्रभा का वर्णन ६ उपमाओं का सहारा लेकर बिलक्ष बुद्धि- मानी से करते हैं । केशव इस गुण मे बड़े दक्ष हैं । भावार्थ ---यह प्रभाकर की प्रभुताई है या (१) कासदेव का मुमुख है क्योंकि इन दोनों में समता यह है कि दोनों कोकनद को मोदकर है- (काम तो कोकशास्त्र पाठियों को मोदकर है और सूर्य कमलों को)। या यह (२) रावण का मुख है क्योंकि रावण का मुख पृथ्वीमंडल को दुखदाता है और सूर्योदय कुमुद्दों को। यह सूर्योदय की प्रथा है या किसी (३) ईश्वर भक्त की बढ़ी हुई बुद्धि है, क्योंकि बुद्धि भी पापी जनों को कुकर्म से रोकती और अंधकार को हटाती है। यह प्रभात की प्रभा है या (४) विष्णु के चरण कमल हैं क्योंकि दोनों जल को पवित्र करते हैं। यह प्रभातकाल है या (५) मनुली की ज्योति जगमगाती है , क्योंकि दोनों जग मार्ग दिखलाने वाले हैं ( मनु ने स्मृति रचकर धर्म का मार्ग दिखलाया, प्रभात तो प्रत्यक्षही सब पंथियों को मार्ग में लगाता है ) । यह सूर्योदय का विभव है या (६) श्रीरामजी हैं, क्योंकि सूर्योदय चंद्रमा का तेज हरण करने वाला और तरैयों का विनाशक है और राम जी भी तारापति बालि का तेज हरने वाले और (तारका तारक) ताड़का को तारने बाले थे।