पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१४८

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प्रिया-प्रकाश भावार्थ-यह समुद्र है या शंकर का शरीर है, क्योंकि जैसे शंकर शरीर में भस्म, सुधा, (सुधाकर ) और विष की अधि- कता है वैसेही इसमें भी रसादि, अमृत और बिष (जल) की अधिकता है और जैसे शिव शरीर के दर्शन से पाप नाश होता है वैसे ही इसके दर्शन से भी पाप का छेदन होता है। यह समुद्र है या कश्यप का घर है क्योंकि जैसे कश्यप के घर में देव और दैत्य रहते हैं वैसे ही समुद्र में भी रहते हैं। यह समुद्र है या संत का हृदय है क्योंकि यहां भी सदा हरि बसते हैं, संत हृदय में बसते हैं और इसकी घेसी अनंत शोभा है कि कोई कबि कह नहीं सकता। यह समुद्र है या कोई नागर पुरुष है क्योकि जैसे नागर पुरुष का शरीर चंदन की खोरों से युक्त होता है वैसेही इसका शरीर भी चंदन युक्त है। (षट ऋतु वर्णन) (बसन्त) मूल-वरनि बसंत सपुष्प अलि, विरहि बिदारन बीर । कोकिल कलरव कलित बन, कोमल सुरभि समीर ॥२८॥ भावार्थ-वसंत का वर्णन फूल, भौंरे, कोकिल, सुन्दरशब्द, वन और मंद सुगंधित बाशु सहित करना चाहिये, क्योंकि यही वस्तुएं बिरही जोकोविदीर्ण करने को वसंत के योद्धा हैं। मूल-तिल समीर शुभ गंगा के तरंगयुत, अंबर बिहीन वपु बासुकि लसंत है। सेवत मधुपगण गजमुख परभृत बोल सुन होत सुखी संत औ असत है।