पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१४९

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सातवा प्रभाव श्रमल अदल रूप मंजरी सुपद रज, रंजित अशोक दुख देखत नसंत है । जाके राज दिसि दिसि फूले हैं सुमन सब, शिवको समाज कियौं केशव बसंत है ॥२७ ।। शब्दार्थ-(शिवसमाज पक्ष ) अंबर-कपड़ा। वासुकि = सर्प। मधुप-देवता। अदल - (अपर्णा) पार्वती । रूपमंजरी- सुंदरी। अशोक = शोक रहित जन । सुमन देवता। भावार्थ (शिव का समाज कैसा है कि ) जहां पवित्र कारिणी गंगाजी की तरंगों से मिल कर शीतल बायु बहा करती हैं, शिव का शरीर दिगम्बर है और सर्प की माला सोहती है। अनेक देवता, गणेश और परमुख जिनकी सेवा करते हैं और जिनके बचन सुन कर संत और असंत ( रावण बाणासुरादि) सब सुखी होते हैं। जहां विमल चरित्रा सुसी पार्वती की चरणरज से लोग शोकरहित होजाते हैं क्योंकि वे चरण ऐसे हैं जिन्हें देख कर दुःख नाश हो जाते हैं। और जिन शिव के राज्य में देवता फुलमान रहते हैं। अतः यह शिव का समाज है या दसंत है। शब्दार्थ--(वसंत पक्ष)-शीतल-चंदन। गंगा के तरंग युत गंगा की तरंगों में सनी अर्थात् ठंडी। अंबर = आकाश । बिहीनबयु = कामदेव। बासुकी = पुष्पमाला। परमृत - कोयल । अदल =सबसे बढ़क | रूपमंजरी सुन्दर स्त्री। अशोक - वृक्षविशेष ( प्रवाद है कि सुन्दर स्त्रियों के पाद- प्रहार से अशोक वृक्ष फूलता है) % 3D