पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रिया-प्रकाश भावार्थ-(बसंत कैसा है कि ) जिसके समय में बंदन बास युक्त और ठंढी बायु बहती है (मानो गंगा से मिलकर श्राई हो ), आकाश, कामदेव ओर पुष्पमालाएं सब खूब लसते हैं,. भारे हाथियों के मुखों का सेवन करते हैं (बसंत ही में हार्थी मस्ताते हैं और उनके गंडस्थलों से गजमद बहता है, भौरे उनको घेरे रहते हैं ), कोयल बोलली है जिसके बोल सुन कर भले बुरे सब लोग सुखी होते है। निर्मल और अधिक सुन्दर स्त्रियों की पदरज से सुशोभित अशोक वृक्षों को देख कर ( उनकी पदरज की बरकत से पुष्पित अशोको को देख कर) दुःख दूर होते हैं, और जिसके राज्यकाल में सब प्रकार के फूल फूलते हैं। अतः यह वसंत है या शिव का समाज है। (श्रीमावर्णन) मूल-ताते तरल समीर मुख सूखे सरिता ताल | जीव अबल जल थल विकल श्रीषम सफल रसाल रहा शब्दार्थ-ताते=गर्म । तरल = चंचल ( तेज चलने वाली )। मुखसूखे = लोगों के मुख सूखते हैं। रसालापवृक्ष ( केवल आंबही सफल होते हैं) (यथा) मूल-चंडकर कलित, बलित बर सदागति, कंदमूल फल फूल दलानि को नास्लु है । कीच बीच बचैं मीन, ब्याल विल. कोलकुल, द्विरद दरीन दिनकृत को बिलासु है ।। थिर चर जीवन हरन बन बन प्रति. केशोदास - मृगतिर अबन निवासु है।