पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१५२

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प्रिया-प्रकाश और तेज बहने वाले वायु से युक्त है, और जो कंद मूल, फल फूल और पत्तों का काल ही है। सूर्य ऐसे तपते हैं कि उनकी गरमी के प्रभाव से शायद ही कीचड़ में धंसकर मछलियां, बिल में पैठकर सर्प, और गुफा में रहकर शूकर और हाथी बचाते हो तो बचनाते हो (नहीं तो कोई जीव नहीं बचता ) । बन के और जल के थिर तथा चर जीवों के पानी को सोखने वाली है, इस ऋतु में हाशिरा नक्षत्र खूब तपता है (श्रवता नहीं बरसता नहीं)। मरुभूमि की तरह हतबल मेंड़े प्यास से व्याकुल सूखे तडागों की ओर दौड़ते हैं, और सरोवर जल रहित हो जाते हैं, अतः पया यह श्रीम का विभव है ? (प्रीम में इतनी बातें अवश्य होती हैं) (वर्षा वर्णन) मूल-वर्षा हंस पयान, बक, दादुर. चातक, मोर। केतकि पुष्प, कदंब, जल, सौदामिनि घन घोर ॥३१॥ शब्दार्थ-हसपथान = (१) हंसो का मान सरोवर को चला जाना (२) सूर्य का गायब रहना । घनघोर =(१) बादल की गरज (२) बादलों का सह । (प्रथा) मूल-भौहैं सुर चाप चारु प्रमुदित पयोधर, भूख न जराय जोति तडित रलाई है। दूरि करी सुख मुख सुखमा ससी फी नैन, अमल कमल दल दलित निकाई है ।। केशोदास प्रबल करेनुका गमन हर, मुकुत सुहंसक-सवद सुखदाई है।