पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सातवाँ प्रमाव अंवर बलित मति मोहै नीलकंठ जू की, कालिका कि बरषा हरषि हिय भाई है ॥३२॥ (नोट)-इसकी टीका केशव कौमुदी' के रखें प्रकाश में १९वें छंद में देखिये । यही छंद वहां भी है। (शरद वर्णन) मूल-अमल अकास प्रकास ससि मुदित कमल कुल काँस । पंथी पितर पयान नृप शरद सु केशवदास ॥ ३३ ॥ ( यथा) मूल-सोभा को सदन ससि बदन मदन कर, बंदै नर देव कुबलय बरदाई है। पावन पद उदार लसति हंसक मार, दीपति जलजहार दिसि दिसि धाई है ।। तिलक चिलक चारु लोचन कमल रुचि, चतुर चतुरमुख जग--जिय भाई है। अमल अंबर नील लीन पीन पयोधर, केशोदास शारदा कि शरद सुहाई है ॥३४॥ (नोट)-इसमें शारदा और शरद दो पक्षों में अर्थ लगेगा। शब्दार्थ-(शारदा पक्ष में)-मदन कर-जो मद ( गर्ब) नहीं उत्पन्न करता । कुवलय =(कु+वलय ) भूगोल, पृथ्वीमंडल। हंसक = पगभूषण । मार-माल । जलजहार=मुक्ताहार । चतुरमुखः ब्रह्मा । अंबर=कपड़ा। अंबरनील नीली साड़ी। पीनपयोधर-उतंग कुच । १०