पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१५४

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प्रिया-प्रकाश भावार्थ-(शारदा पक्ष में)-शोभायुक्त चंद्र समान है जिसका, पर जिसको अपनी सुंदरता का ज़रा भी घमंड नहीं होता, मनुष्य और देवता जिसकी बंदना करते हैं, और सारे भूमंडल को बल देने वाली है (अथवा बर देती है ), जिसके पवित्र चरणों में अच्छे पगभूषण लसते हैं, और मोतियों के हार की चमक सब दिशाओं में फैलती है। जिसके तिलक की सुन्दर चमक है, नेत्र कमल समान हैं और जो चतुर ब्रह्मा तथा समस्त अगजीत्रों को भाती है, और नीलाम्बर में जिसके उतंग कुच छिपे हुए हैं। ऐसी शारदा है या शरद है ? शब्दार्थ-(शरद पक्ष में)-शशि चंद्रमा । मदनकर = कामो- दीपक । जर देव वंदै - (१) जिस ऋतु में मनुष्य देवों की बंदना करते हैं (२) राजालोग जिसकी बंदना करते हैं (जिस ऋतु में राजा लोग दिग्विजय को निकलते हैं)। कुवलय = कमल वा कुमोदिनी। पद - स्थान । हंसकमार= हंसमाला, हंसों का समूह । जलजहार = कमलों का समूह । तिलक एक वृक्ष विशेष जिसके फूल गुच्छेदार होते हैं। यह वृक्ष साल में दो बार फूलता है बसंत में और शरद में। इसी से इसका वर्णन दोनो ऋतुओं में होता है। कमल = जल ! चतुरमुख चारो ओर। अंदरअाकाश । पयोधर = भावार्थ-(शरद कैसी है कि) शोसापूर्ण चंद्रमा ही जिसका सुन्न है, जिसे देखकर कामोद्दीपन होता है। जिसकी वेदना राजा लोग करते हैं और जो कमलों को बल देती है ( पुष्ट करके बीज युक्त करती है ) अच्छे अच्छे पवित्र स्थानों में (सरिता सरोवरादि में ) हंसों के झुंड शोभा देते हैं और सब तरफ कमलों की छरा दिखाई पड़ती है। तिलक वृक्षा वादला