पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सातवां प्रभाव के फूलों की चमक आँखों को रुचती है, बारो ओर के चतुर मनुष्यों को जल की निर्मलता अच्छी लगती है और समस्त जगजीवों को यह शरद भाती है। निर्मल नीले आकाश में (वर्षा काल के) बड़े बड़े बादल विलीन हो गये हैं। ऐसी यह शरद ऋतु है कि शारदा है। (हेमन्त वर्णन) मूल-तेल, तूल, तांबूल, तिय, ताप, तपन रतिवंत । दीह स्यान, लघु दिवस सुनि सीत सहित हेमंत ॥३॥ शब्दार्थ-सूल रुई । तांबूल-पान । ताप-अशि। तपन - सूर्य । इन बस्तुओं से लोग प्रेम करते हैं। (यथा) मूल-अमल कमल दल लोचन, ललित गति, जारत समीर सीत, भीति दीह दुख की । चंद्रक न खायो जाय, चंदन न लायो जाय, चंद न चितयो जाय प्रकृति बपुष की ॥ घट की घटति जाति घटना घटी हू घटी, छिन छिन छीन छवि विमुख सुख की । सीकर तुषार खेद सोहत हेमंत ऋतु, किधों केशोदास प्रिया प्रीतम बिमुख की ॥३६॥ (नोट)-इसमें हेमन्तऋतु और विरहिनी नायिका दोनों पक्ष का अर्थ घटित होगा। शब्दार्थ-( हेमंत पक्ष)-लोच न (रोचन) रोचकता नहीं है। खलित गति-धीरे धीरे। चंद्रक-जस्व । प्रकृति