पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१५८

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प्रिया-प्रकाश शब्दार्थ-(शिशिर-शोभा पक्ष ) सरस अधिक (ऊंचे दज के)। असम =जो बराबरी के न हो (नीचे दर्जे के) सर= (सरि) घरायर । सरसिज लोचनी कमलनयनी स्त्रियां। लोकलीक: जगत की मर्यादा। आगरी= निपुण । जून = (पुराना ) वृद्ध । उमगि = उत्साह से। उजागरी जाहिरा, प्रत्यक्ष । पल्लव-नवीन पत्र । मधु-मकरंद । मधुपौरे । ही रचित = हृदय अनुरक होता है। पिकरत कोयल की बोली। इतिविधि = इस प्रकार की। सदागतिबायु । वास-सुगंध । विगलित फैली हुई। भावार्थ-(शिशिर की शोभा कैसी है कि ) ऊंच नीच लोग सप बराबर हो जाते हैं (ऊंच नीच स्त्री पुरुष का विचार छोड़ लोग होली फाग मिलकर खेलते हैं ) कमलनयनी खियों को देखो कि वे लोक मर्यादा और लाज लोपने में निपुण हो जाती है। सुन्दर लताओं को बाहु जानो, वे बाहुबूढ़े, जवान और बाल वृक्षों से प्रत्यक्ष उमंग उमंग कर लपटती हैं । नये पत्ते ही होंठ हैं, पुष्प रस को पीते हुये भौंरों के हृदय उनके अनुराग से रच जाते हैं, और कोयल की सुन्दर बोली तो सुप्त का सागर ही है। शिशिर की शोभा इस प्रकार की है कि वायु के सब शरीर में सुगंध फैली रहती है (वायु सुगंधित होती है) शब्दार्थ-(बारनारि पक्ष)-सरस अधिक होता है। अलमसर%=(विषमशर) काम । अधर मधुश्रधर रस । मधुप-शराबी लोग । वासविगलित गात शरीर से सुगंध निकलती है। भावार्थ-(गणिका कैसी है कि) अधिक कामवती और