पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१६०

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आठवां प्रभाव (राज्य श्री भूषण वर्णन) मूल-राजा, रानी, राजमुत, प्रोहित, दलपति, दूत ! मंत्री, मंत्र, प्रयान, झ्य, गय, संग्राम अभूत ॥ १॥ शब्दार्थ-राजसुत - राजकुमार दलपति = सेनापति प्रयाल = दिग्विजय हेत सेना की रवानगी । श्रभूत- जैसा पहले कभी न हुश्रा हो, अपूर्व । मूल-आखेटक, जलकेलि पुनि, बिरह, खयम्बर जानि । भूषित सुरतादिकनि करि, राज्यश्री हि बखानि ॥२॥ शब्दार्थ---आखटक-शिकार । सुरत = स्त्री प्रसंग। (मोट)-राज्यश्री वर्णन में ऊपर लिखे विषयों का वर्णन जानना चाहिये। ( राजा वर्णन) मूल-प्रजा प्रतिज्ञा, पुन्यपन, परम प्रताप, प्रसिद्धि । शासन, नाशन शत्रु के. बल विवेक की वृद्धि ॥३॥ भावार्थ-राजा के वर्णन में प्रजारंजनता, दृढ़ प्रतिज्ञता, नियम से पुन्य करना, प्रताप, शोहरत, श्राक्षा का अातंक, शत्रुनाशन- शक्ति, बल और विवेक की वृद्धि का जिक्र करना ज़रूरी है। मूल-दंड, अनुग्रह, धीरता, सत्य, शूरता, दान । कोष, देश युत वर्णिये, उद्यम, छमा निधान ॥४॥