पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१६१

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आठवां प्रभाव शब्दार्थ-अनुग्रह -कृपा ! कोष बजाना । उद्यम = कुछ करते रहना ( राज्य बढ़ाने का दृढ़ करने में लगा रहना।) छमा-माफ कर देना। (यथा) मूल-नगर नगर पर घन ही तो गाजै घोर, ईति की न भीति, भीति अधन अधीर की। अरि नगरीन प्रति होत है अगम्या गौन, भावै ब्यभिचारी, जहां चोरी पर पीर की। शासन को नासन करत एक गंधवाह, केशोदास दुर्गनहीं दुर्गति शरीर की। दिसि दिसि जीति पै अजीति द्विज दीनान सों, ऐसी रीति राजनीति राजे रघुधीर की ॥५॥ शब्दार्थ-ईति सात प्रकार के उपद्रव जिनसे खेती की हानि होती है अर्थात् (१ ) अतिवृष्टि (२) अनावृष्टि (३) मूसों का लगना (४) टिड्डी का निकलना (५) शुकादि पक्षियों से हानि (६) प्रजाविद्रोह (७) विदेशी राजा का प्राक्र- मण। यथा- अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषकाः शलभाः शुकाः । खचक्रं परचक्रं च सप्तेता ईतयः स्मृताः।। अधन = प्रजा की निर्धनता। अगम्या गौन = (१) अगम्या त्रियों से प्रसंग करना, (२) अगम स्थानों में जाना । व्यभिचारी: = (१) परस्त्रीगामी (२) साहित्य के ३३ संचारी भाव-असूया, ग्लानि, विषाद, धृति, मति इत्यादि । शासन -