पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मिया-प्रकाश अाज्ञा। गंधवाह = वायु । दुर्गति = टेढ़ापन , कुबड़ापन । दुर्ग-किला, गढ़। भावार्थ-श्री राम जी की राजनीति से देश में ऐसा सुख है कि किसी नगर पर कोई शत्रु चढ़ाई नहीं करता, केवल बादल ही नगर घेर कर धोर गर्जन करते हैं। ईतियों का तो कोई भय नहीं, भय है तो केवल इस बात काकि कोई निर्धन न रहे और दरिद्र से अधीरहोकर कोई कुकर्म न कर बैटे । गम्या- गमन केवल शत्रु के नगरों पर होता है ( कैसाही दुर्गम नगर हो, पर रामसेना उसके भीतर पहुंच ही जाती है ) राम के राज्य में नाम मात्र के लिये भाव ही व्यभिचारी हैं ( अन्य कोई पुरुष व्यभिचार नहीं करता ), चोरी केवल पर दुःख की होती है । लोग शौक से पर दुःख हरते हैं)। श्राज्ञा भंग केवल बायु ही करती है (अंतःपुर में चली जाती है अथवा सुगंध चोराले जाती है ) और केवल गढ़ों के शरीर ही की दुर्गति है (टेढ़े मेढ़े हैं)। हर ओर रामजी की जीत ही होती है केवल ब्राह्मण और दीन जनों से राम जी हार मान (राजपाली वर्णन) मुल-सुन्दरि, सुखद, पतिव्रता, शुचि रुचि, शील, समान । यहि विधि रानी वरानिये सलज सुबुद्धि निधान ॥६॥ शब्दार्थ--शुबिरुचि भंगार में जिसकी रुचि हो, अथवा पवित्र रुचि वाली । समान-जिसे अपने उच्च पद का ध्यान हो । सलजलज्जावती।