पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१६३

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माढवां प्रभाव (यथा) मुल-माता जिमि पोषति, पिता ज्यों प्रतिपाल करे, प्रमु जिमि शासन करति, हरि हिय सों। भैया ज्यों सहाय कर, देति है सखा ज्यौं सुख, गुरु ज्यों सिखावै सीख हेत जोरि जिय सों। दासी ज्यों टहल करै, देवि ज्यों प्रसन्न है, • सुधार परलोक नातो नाहि काडू विय से।। बाके हैं अयान मद छित्ति के छनक छुद्र, औरनि सों नेह करै छोड़ि ऐसी तिय सौ ॥७॥ शब्दार्थ-हेरि हिय सौहृदय से अपना समझ कर । विथ = । अयान = अज्ञान । मद छिति के भूपाल होने के मद ।। छनक छुद्र = क्षण धुद्धि और क्षुद्र । भावार्थ-पहले चरण का भाव प्रजा और सेवक गण के संबंध में समझो ! दूसरे चरण का भाव परिचार वर्ग के संबंध में जानो। तीसरे चरण का भाव पति के प्रति समझो। अर्थ सरल और स्पष्ट है। (पुनः) मूल-काम के हैं आपनेही कामरात, काम साथ, रति न रतीको जरी, कैसे ताहि मानिये । अधिक असाधु इन्द्र, इन्द्रानी अनेक इन्द्र भोगवति, केशोदास बेदन बखानिये। विधिहू अविधि कीनी, सावित्रीहू शाप दानी, ऐसे सब पुरुष युवति अनुमानिये । दुसरा