पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१६४

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प्रिया-प्रकाश राना रामचंद्रजू से राजत न अनुकूल... सांता सीन पतिव्रता नारी उर आनिये । ८॥ शब्दार्थ-कामके हैं अपनेही= निज निज स्वार्थ साधक है। न रतीको जरी जरा भी न जली (सती न हुई)। असाधु = व्यभिचारी। अविधि कीनी-नियम विरुद्ध कार्य किया। सावित्री सरस्वती। युवति-स्त्री। नायक, एक पत्नीव्रत पुरुष । उर आनिये समझिये । भावार्थ-श्री रामजी के समान एक पत्नीवत नायक और श्री जानकीजी समान पतिव्रता स्त्री अन्य कोई नहीं है। काम और रति तो निजस्वार्थी हैं (क्योंकि काम अनेक नारियों से भोग करता है और) काम के जलने पर रति उसके साथ सती न हुई, जब कैसे इनको राम जानकी समान माने। इन्द्र तो बड़ाही व्यभिचारी है और इंद्रानी अनेक इंद्रों से भोग करती है यह बात बेद कहता है (इन्द्र बदलते जाते हैं, इन्द्रानी सदैव एकही रहती है)। ब्रह्मा ने भी नियम विरुद्ध काम किया ( अपनी कन्या सरस्वती पर मन चलाया) और सरस्वती ने भी उन्हें शाप दिया (कि तुम्हारी पूजा प्रतिष्ठर न हो) और भी सष नर नारियों को इसी प्रकार अनुमान कर लिया, तो मालूम हुश्रा कि राम सा अनुकूल नायक और सीता समान पतिव्रता स्त्री कोई नहीं। (राजकुमार वर्णन ) मूल -विद्या विविध बिनोद युत, शील सहित आचार । सुदर, शूर, उदार, बिमु, बरनिय राजकुमार ॥९॥