पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१६५

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पाठवां प्रभाव (यथा) मूल-दानिन के शील, परदान के प्रहारी दिन, दानवारि ज्यों निदान देखिये सुभाय के। दीपदीप हू के अवनीपन के अवनीप, पृथु सम केशोदास दास द्विज काय के । आनंद के कंद सुरपालक से बालक ये, परदार प्रिय, साधु मन बब काय के । देह धर्म धारी पै विदेहराज जू से राज, राजत कुमार ऐसे दशरथ राय के ॥१०॥ शब्दार्थ-दानित के शील = दानियों का स्वभाव है। पर = शथु। दान के प्रहारी जबरदस्ती दान लेनेवाले। दानवारि विष्णु। निदान = अन्ततः। अवनीप-राजा। कंद = बादल । परदार = लक्ष्मी वा पृथ्वी। भावार्थ-बड़े बड़े दानियों के से स्वभाव वाले हैं। सदैव शत्रुओं से दंडस्वरूप धनदान लेनेवाले हैं, और अंततः (विचा र पूर्वक देखने ले ) विष्णु के से स्वभाव वाले हैं। समस्त डीपों के राजाओं के भी राजा हैं और राजा पृथु के समान 'चाक- वर्ती हैं, पर तोभी ब्राह्मण और गाय के सेवक हैं। आनंद बारि बरसानेवाले बादल हैं, ये बालक देवताओं के पालक से (इन्द्र समान) हैं, लक्ष्मी के बल्लभ हैं, पर मन बचन कर्म से शुद्ध हैं। देहधारी हैं, पर विदेह समान हैं। हे राजन् ! ऐसे गुणवाले के बालक अयोध्यापति राजा दशरथ के पुत्र हैं।