पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१६७

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आठवा प्रभाव (दलपति वर्णन ) मूल-स्वामिभक्त, श्रभाजित, सुधी, सेनापति सु अभीत । अनालसी, जनप्रिय, जसी, सुख संग्राम अजीत ॥ १३ ॥ शब्दार्थ-श्रमजित ओथकै नहीं, अथक । सुधी अच्छी बुद्धि बाला । अभीत-निडर। अनालसी-जिस में आलस बहो। सुख संभाम अजीत जो सुख से न जीता जाय (सुख भोगी न हो) वा सुखका ब्यसनी न हो, श्राराम परस्त न हो और संग्राम में जिसे कोई पराजित न कर सके। (यथा) मूल-छाडि दियो अति आरस पारस केशव स्वारथ साथ समूरो। साहस सिंधु, प्रसिद्ध सदा जलहू थलहू बल विक्रम पूरो । लोहत एक अनेकन माहिं, अनेक न एक विना रन करो। राजत है तेहि राजको राज सुजाकी चमू में चम्पति सूरहे १४ शब्दार्थ-पारस पारस-भालसियों का पार्श (संग)। सभूरो =सब । विक्रम = कोशिश, उधोग। रूरो-श्रच्छा, शोभित। भावार्थ-जिसने बालस का संग और समस्त स्वार्थ छोड़ दिया हो (बालली और स्वार्थी न हो) जो बड़ा साहसी हो, जलयुद्ध और स्थलगुद्ध में बल और उद्योग करने में जिस- की प्रसिद्धि हो, जो सैकड़ों में एकही बीर हो, और जिसके बिना अनेक बीर भी अच्छी प्रकार युद्ध न कर सकें। सिस की सेना में ऐसा शूर सेनापति हो, उसी राजा का राज्य शोमा पाता है।