पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१६८

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प्रिया-प्रकाश (दूत वर्णन) मूल-तेज बढे निज राज को अरि उर उपलै छोभ । इंगित जानै, समय गुण बरनहु दूत अलोभ ॥ १५ ॥ शब्दार्थ-छोभः कम्प । गित= इशारा, बात की मंशा ( तात्पर्य)। समयगुण - समय का विचार राखै । अलोस निर्लोभी। (यथा) -खारथ रहित, हित सहित, विहित मति, काम, क्रोध, लोभ, मोह, छोभ मद होने हैं। मीत हू अमीत पहिचानिबे को, देश काल, बुद्धि, बल जानिबे को परम प्रबीने हैं । आपनी उकति अति ऊपरी दै औरनि की, दूर दूर दुरी मति लेले दश कीले हैं। केशोदास रामदेव देश देश अरिदल, राजनि को देखिये को दूतै हग दीने हैं ॥१६॥ शब्दार्थ विहित मति = शुद्ध बुद्धि वाले। हीने = रहित । आपनी उकति अति ऊपरी दै- केवल अपनी ऊपरी बात बताते हैं। (अपना दिली भेद किसी से नहीं कहते )। दूतै दाग दीने हैं = दूत ही रूप आँखें लगाये रहते हैं (पेसे उत्तम दूतों द्वारा सब जगह का हाल इस तरह जानते रहते हैं जैसे अपनी आंखों देखते हो) भावार्थ -सरल और स्पष्ट है 1