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प्रिया-प्रकाश


भावार्थ-मिती फागुन सुदी ५ बुधवार संवत् १६५८ को कविप्रिया ग्रन्थ का श्रारंभ किया गया । मूल नृपकुल बरनौं प्रथम ही अरु कवि केशव वंश । प्रगट करी जिन कांब प्रिया कविता के अवतस ॥५॥ शब्दार्थ--अवतंस-शिरोभूषण, मुकुट । (नुपवंश वर्णन) नोट--इस प्रसंग की टीका अनावश्यक जंचती है, केवल कठिन शब्दार्थ देंगे। भूल-ब्रह्मादिक की बिनय ते हरन सकल भुविभार । सूरज बंस करचौ प्रगट रामचंद्र अवतार ॥ ६ ॥ तिनके कुल कालिकालरिपु कहि केशव रणधीर । गहरवार विख्यात जग प्रगट भये नृप बीर ॥ ७॥ भावार्थ सूर्य वंशजात गहरवार कुल में 'चीरसिंह' नामक एक राजा हुए (जो अबध में रहते थे) मूल- करण' नृपति तिनके भये धरनी धरम प्रकास । जीति सबै जगती करयौ बाराणसी निवास ||८ प्रगट करण तीरथ भयो जगमें जिनके नाम । तिनके 'अरजुनपाल' नृप भये महोनी ग्राम ॥ ६ ॥ भावार्थ-बीरसिंह के पुत्र 'करण पाल' हुए। इन्होंने काशी में रहना पसंद किया और अपने नाम से करण तीर्थ स्थापित किया जिसे अब 'करणघंटा' कहते हैं। इनके पुत्र अर्जुन पाल' हुए जिन्होंने झांसी के निकट 'महोनी' गांव में रहना पसन्द किया।