पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१७१

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आठवाँ प्रभाव १६१ (नोट)-यहां 'केशव' शब्द में ही कृष्ण की सारी विशेषता भरी है । 'केशव' शब्द का अर्थ है जो सबको प्रकाशित करे। शुधिष्ठिर के यश को प्रकाशित करने की पूर्ण योग्यता कृष्ण ने दिखलाई जो संत्री में होना चाहिये। (मंत्र वा मंत्री मति वर्णन) मूल-पंच अंग गुमा संग घट, विद्याथुत दशचारि । आगम संगम निगम मति, ऐसे मंत्र बिचारि ॥२०॥ शब्दार्थ-राजनीति के पांच अंग =(१) साहाय्य (२) साधन (३) उपाय (४) देशज्ञान और (५) कालज्ञान । पटगुण- पर राष्ट्र के साथ व्यवहार करने के छ ढंग-(१) संधि- सुलह कर लेना, (२)-विग्रह-लड़ाई ठान देना (३) यान- चढ़ाई करने की धमकी देना (४) प्रासन-शत्रु के सामने सेना डा देना । (५) वैधीभाव-मुख्य उद्देश्य गुप्त रखकर दूसरा उद्देश्य प्रगट करना । (६)-संश्रय-झूठा बहाना ढूंड निकालना । दशचारि (चौदह ) विद्या-(१) ब्रह्मज्ञान ( (२) रसायन (३) स्वरसाधन (४) वेदपाठ (५) ज्योतिष (६) व्याकरण (७) धनुर्विद्या (८) जलतरण (९) वैद्यक (१०) कृषिविद्या ।(११) कोकविद्या (१२) अश्वारोहण (१३) नृत्य (१४) समाधानकरण चातुर्य । आगम = भविष्य कर ज्ञान । संगम् = वर्तमान का ज्ञान । निगल = भूतकाल का ज्ञान । सायार्थ इतनी जानकारी जिसे हो उससे मंत्रणा करे, यह राजा को उचित है। ( यथा) क्रोध विरोध तजी सब स्वारथ बुद्धि अनैसी। भेद, अभेद, अनुग्रह, विग्रह, निग्रह संधि कही विधि जैसी.। तु-केशव मादक