पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१७२

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प्रिया-प्रकाश बैरिन को बिपदा प्रभु को प्रभुता करै मंत्रिन की मति ऐसी। राखत राजन, देवन ज्यों दिन दिव्य बिचार विमानन वैसी ॥२१ शब्दार्थ-अभैसी दुरी। भेद-भेद करा देना। अभेद: मित्रता करादेना । अनुग्रह = कृपा। बिग्रह लड़ाई । निग्रह = पकड़ लेना, नजरबंद करना । दिन प्रति दिन ! राखति रक्षा करती है। दिव्या विचार उत्तम मंत्र वैसी उसी प्रकार । भावार्थ-जिस संधीकी मति ने मादक वस्तुओं का सेवन, क्रोध, विरोध, और बुरी तरह स्वार्थ साधन की चाल छोड़ दी हो। जो भेद, विाह, संधि इत्यादिक नीतियों में चतुर हो, जो शशुओं की विपदा और निज प्रभु की प्रभुता बढ़ाने में चतुर हो, मंत्रियों की ऐसी बुद्धि से और उस बुद्धि के दिव्य विचारों से राजाओं की सदैव इस प्रकार रक्षा होती है जैसे विमानों से देवताओं की। (पयान वर्णन) मूल-चवर, पताका, छत्र छबि, दुंदुभि, धुनि बहु यान । जल थल मय भूकंप रज जित बरणि पयाम ॥ २२ ॥ (यथा) भूल -राघव की चतुरंग चमू चच को गनै केशव राज समाजनि ! सूर तुरगस के उरम पग तुंग पताक्रनि के पट साजनि । टूटि प” तिनते मुकता धरणी उपमा बरणी कवि राजनि । बिंदु मनो मुख फेनन के किधौं राजसिरी श्रबै मंगल लाजनि ।२३। शब्दार्थ-वभूचय सेना समूह । बिंदु == बूंद । राजसिरीः राजश्री, राज लक्ष्मी । श्रवैबरसाती है। लाजा= लाश, धान की खोलें।