पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१७४

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प्रिया-प्रकाश शब्दार्थ-सरल = चपल । तताई = शोखी, चाबुक न सह सकें। सुखमुख - मुहँजोर न हो। लघुदिन थोड़ी अवस्था के, नव युवक देश = उत्तम देश के हों जैसे अरब, एराक, कच्छ, भूटान इत्यादि । सुबेश- सुन्दर । सुलक्षण- शालहोत्र शास्त्रा- नुसार शुभ चिन्ह युक्त। (यथा मूल-बामनाह दुपद जु नाप्यो नम ताहि कहा, नाऐं पद चारि थिर होत यहि हेत हैं। छेकी छिति छीरनिधि छाडि धाप छत्र तर, कुंडली करत लोल चाकै मोल लेत हैं। मन कैसे मीत, बीर बाहन समीर कैसे, नैनन के वैनी, नैन नेह के निकेत हैं। गुणगण बलित, ललित गति केशोदास, ऐसे बाजि राम चंद्र दीनन को देत हैं ।। २६ ॥ शब्दार्थ -वामन = बामनावतार=('हरि' घोड़े का भी नाम है)। नाप्यो नभसारा अाकाश बामन के एक डग भर हुआ। यहि हेत- यह समझ कर। छेकी=धेर ली है। छीरनिधि = समुद्र (जो घोड़ों का पिता है) धाप -दौड़ । लोल = चंचल (चाक का विशेषण) वैनी = रस्सी जिससे दुहते समय गाय के पैर बांध दिये जाने हैं जिससे वह गाय अचल हो जाती है। गुण गण बलित= शालहोत्र शास्त्रानुसार समस्त शुभ चिन्हों से युक्त । ललित गति उत्तम चाल वाले। भावार्थ-हरि' हमारा नाम है और "हरि बामन जी भी थे अब हरि नामधारी बामन ने ही दुपद रूप से आकाश को 1